कुछ सावन के बह जाने से जीवन नही मारा करता ।
खोता कुछ भी नही यहाँ पर, केवल जिलाद बदलती पोथी
जैसे रात उतर चंदिनी, पहने है सुबह धुप कि धोती।।
डूबे बिना नहाने वालों , जले बिना रोने वालों,
कुछ सावन के बह जाने से जीवन नही मारा करता है॥
माला बिखर गयी तू क्या है, खुद ही हाल हो गयी समायासा
अन्न्सून गर नीलम हुए तू , समझों पूरी हुई सम्यासा॥
लूट लिया माली ने उपवन , लूटी न लेकिन गंद फूल कि
कुछ आंगन के बह जाने से जीवन नही मारा करता है॥
टूट गया दिल का शीशा, टूटी न लेकिन मन कि राह,
कुछ अशिअनाओं के बूज जाने से , जीवन नही मारा करता है॥ ॥
2 comments:
very impressive blog i ever read,
lastly pata nahi these people kaun se
SAMUNDRA me dhyan karke words ke liye research karte hai
its very enthuastic poem
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